Friday, May 29, 2015

दहशत...

सुबह निकला हूं, शाम घर
आ पाऊं, दुआ करना,

हर कदम हादसों से भरा
क्या खुशियां, क्या उमंगें
मुझे क्या पता है?
किन रास्तों पर बिछी सुरंग-ए-बारूद
भाग्य या भगवान पर है,
हां मियां, मुझे क्या पता है?

सुबह निकला हूं, शाम घर
आ पाऊं, दुआ करना,

हर गांव, हर बस्ती,
हर शहर, हर कस्बा,
जिधर देखो उधर कत्लगाहें
हर शहर, हर चौराहे
पर तलाशी लेती
वो कातिल निगाहें,

दहशत के साये में
जीने की आदत सी
हो गयी है अपनी,
दर-बदर ढूंढता हूं
शायद ज़िंदगी खो
सी गयी है अपनी,

सुबह निकला हूं, शाम घर
आ पाऊं, बस तुम दुआ करना ।।

Saturday, May 2, 2015

क्यों ठहर गया था.....

क्यों ठहर गया था
इस जीवन-पथ यात्रा में ,
वह असफलता थी मेरी
पराजय तो न थी ,
क्यों शिथिल, नीरव होकर
ठहर गया था ,
वह असफलता इतनी
भयावह भी तो न थी !

क्यों ठहर गया था
इस जीवन-पथ यात्रा मे,

क्यों वह मानसिक वेदना
कचोट रही थी ,
क्यों साहस विश्रिङ्खल था
छिन्न -पत्रों सदृश ,
क्यों वह तीक्ष्ण मार्मिक
प्रतिध्वनि साल रही थी !

क्यों ठहर गया था
इस जीवन-पथ यात्रा में,

क्यों उत्साह बटोही
बिसर गया था ,
जीवन-पथ की कठिन
कंटक राहों में ,
क्यों ठहर गया था
इस जीवन-पथ यात्रा में ,
वह असफलता थी
मेरी पराजय तो न थी!

Thursday, April 9, 2015

......तुम अभी भी मेरे पास हो !

ये पानी भी क्यों इतना
खामोश सा बहता है,
तुम्हारी यादों में बसा ये
समा भी कुछ कहता है,

इन हवाओं में अभी भी
तुम्हारी खुश्बू क्यों आती है,
नाम सुन कर लबों पर
मुस्कुराहट क्यों छाती है,

मेरी बातों में बहुत खास हो,
इन हसीं ख्वाबों का एहसास हो,
किसने कहा तुम दूर हो मुझसे,
तुम अभी भी मेरे पास हो !!

Thursday, April 2, 2015

.......अपना अक्स खोजता हूं।

उन तन्हां पलों में कभी
ज़िंदगी को सोचता हूं,
तेरी उन प्यारी बातों में
अपना अक्स खोजता हूं,

लम्हा थम सा गया था
तेरे आने के बाद,
सब कुछ हासिल हो गया
तुझे पाने के बाद,

तेरे संग भीड़ में भी
खामोशी सी लगती थी,
वो रातें भी हसीं थीं
साथ मेरे जगती थीं,

मेरी चाहतें भी थीं ,
तेरा सुकूं भी था,
तेरी मुस्कुराहटें भी थीं,
मेरा जुनूं भी था,

तुम्हें याद तो होगी ना
वो पीपल की छांव,
वो खूबसूरत बारिशें,
हमारे सपनों का गांव,

तेरी यादों की किताबों संग
तेरी बाट जोहता हूं,
तेरी उन प्यारी बातों में
फ़िर अपना अक्स खोजता हूं !!

Saturday, March 28, 2015

इश्क

चल उन शामों को याद करें,
जो हमने साथ बिताईं...

उन पलों को फ़िर जियें
जिनमें पूरी कायनात पाई,

बस वो जुस्तज़ूं पूरी हो,
उसका इंतज़ार करता हूं,

मुझे याद है इश्क हमारा,
मैं बाहें पसारे बैठा हूं...
मैं राह तुम्हारी तकता हूं !!

Wednesday, March 18, 2015

Memories..

The fragrance of your talks,
In the garden of my memories,
The evenings near the coastal rocks,
Still say your untold stories.

The wavy sea,that lovely sight,
That embrace,that lingering kiss
That blanket,the white night,
That memorable moment of bliss.

The insistence,the passion
The wish,the intoxication
Miss your ludicrous talks,
with you that garden walks,
your flirtatious looks,
Read your letters,
Kept in old books.

Wednesday, March 4, 2015

ज़िद के पर्दे...

अपने ज़िद के पर्दों को
मेरी ख्वाहिशों की खिड़कियों से हटाओ,

मंज़िल की उम्मीद नहीं करता तुमसे, पर कुछ वक्त यूं ही राहों में तो साथ आओ !!

Monday, March 2, 2015

बेशर्मी

सियासी गुरूर तुम पर कुछ
यूं सिर चढ़ बोलता है,
कि ज़िक्र से भी हमारे
लहू तुम्हारा खौलता है,

इन्सानियत के कत्ल-ए-आम
को माना तुम ना बचा पाए,
हैरानियत तो इस पर है कि
तुम मरहम भी न लगा पाए,

अपने बेशर्मी के कम्बलों
को सीने से हटाते,
कुछ वक्त के लिये ही सही
हमारे तम्बुओं में तो आते,

वो रन्गीं शामें तो तुम्हें
खूब भायी होंगी,
पर क्या खबर कि तुम्हें
हमारी याद भी आयी होगी,

वहां तुम्हारे जश्न-ए-रात
की सुबह न होती होगी,
यहां हमारी काली रातों
की सुबह न होती है,

वो सफ़ेद चादर कोहरे की
रातों में जो छाती है,
कफ़न बन के हमारे आंखों
के 'नूर' को ओढ़ाती है,

सांसे सहमी न होती हमारी
एक बार तुमने पुकारा तो होता,
उजड़ा आशियां तो दो पल में
बनता गर एक हाथ तुम्हारा भी होता,

पर शायद पानी तुम्हारी
आंखों का सूख गया है,
तुम पर यकीन भी हमारा
टूट सा गया है !!

( अगस्त-सितम्बर 2013 में उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर दन्गों में सैकड़ों जानें गयीं, कई सैकड़ों लोग घायल हुए और हज़ारों की संख्या में लोग बेघर हुए, इससे भी बुरे हालात तब हुए जब दन्गों के बाद राहत कैम्पों की बदहाल हालत की ओर प्रशासन की उदासीनता बनी रही, नतीजन दिसम्बर 2013 और जनवरी 2014 में 33 से ज्यादा (एक रिपोर्ट के मुताबिक) बच्चों की मृत्यु  हुई।

'बेशर्मी' मैने जनवरी 2014 में लिखी जिसे आज आपके समक्ष रख रहा हूं ।

'बेशर्मी' एक प्रयास है उन राहत कैम्पों की हालत दर्शाने का और श्रद्धांजली है उन बच्चों को जिनकी मृत्यु राहत कैम्पों में सर्दी के कारण हुई। )

Friday, February 27, 2015

कभी.……

कभी किनारों से खौफ़ था मुझे,
पर आज तेरे ख्यालों के साहिलों
से नाता है मेरा,

कभी जुबां पर लाने
से कतराता था,
पर आज हर सांस
पर नाम है तेरा,

कभी मुझे तेरे लिये दो लफ़्ज़
भी ज़्यादा लगते थे,
पर आज तुझपर
किताब भी कम लगती है,

शायद ये तेरी सोहबत
का सुरूर है,
पर ग़म-ए-इश्क ये भी कि
तू मुझसे दूर है !!

Thursday, February 26, 2015

परछाई...

तेरी बातों की खुश्बू फ़िर
मन की हवाओं में आयी है,
वक्त की धूप में अब
शायद तेरी यादें ही
मेरी ज़िंदगी की परछाई है !

Wednesday, February 25, 2015

ज़िक्र जो तेरा जब होता है.…

ज़िक्र जो तेरा जब होता है,
मुस्कुराहटों का सावन
लबों से बरसता है,

तेरे संग ज़िंदगी में
इक मदहोशी सी
लगती है,
बिना तेरे खामोशी सी
रहती है,
हर जुस्तज़ू बिन तेरे
अधूरी  है,
यादों में संग है
पर अभी भी दूरी है,

लम्हा वहीं थम जाता है..
मन तेरे ही खयालों में होता है,
ज़िक्र जो तेरा जब होता है !!

Tuesday, February 24, 2015

कुछ यूं कहूं………

कुछ यूं कहूं, सामने तुम्हारे
मेरे लफ़्ज नहीं निकलते,
ज़िंदगी की शाम यूं ही बीतती है,
तेरी यादों के लम्हों में ढलते,
आरजू तो बहुत कुछ कहने की है,
पर उन रस्तों पर कभी
तुम नही मिलती,
कभी हम नही मिलते !

....बात बेमानी सी लगती है !

उन लम्हों से गुज़री
हर याद,
अब अंजानी सी
लगती है !
सोचता हूँ लिखूँ
नज़्म तुझपे,
पर 'नज़्म' पर नज़्म लिखना,
बात बेमानी सी लगती है!