Friday, October 24, 2014

इंतज़ार....

मैं इंतज़ार करता हुं,
तेरे लौट आने का ऐ ज़िंदगी,
हर पल तेरी बाट जोहता हुं,
शायद ग़म है तेरे खो जाने का,

वो ज़ुस्तज़ू, वो ख्वाहिशें
अभी अधूरी हैं,
मुझे यकीं है तेरे आने का,
तू है तो वो पूरी हैं,

मैं इंतज़ार करता हुं,
तेरे लौट आने का ऐ ज़िंदगी,
तेरे लबों से फ़िर वो
बातें सुनना चाहता हूं,
उन हसीं ख्वाबों को
फ़िर से बुनना चाहता हुं,

तू ही दर्द , तू ही सुकूं
तू ही सुरूर, तू ही जुनूं
मेरी रज़ा है तुझमे ही,
हां तुझमे खो जाने की,
मेरी ख्वाहिश है
तुझको ही पाने की,

मैं इंतज़ार करता हुं,
तेरे लौट आने का ऐ ज़िंदगी!!

Monday, October 20, 2014

नज़्म.....

एक नज़्म जो ख्वाहिशों की
स्याहियों में दबी है,
जिसे लिखने की चाहत
अभी भी जगी है,

वो नज़्म कब मन
के कागज़ों पर आयेगी,
चन्द लफज़ों में ही सही
सब कुछ कह जायेगी,

खुश्बू उन स्याहियों की
हवाओं में छायी होगी,
उन कागज़ों पर उतरी
ज़िंदगी की परछाई होगी,

खमोशियों की बून्दें
जो कागज़ों पर पड़ी हैं,
उनको सुखाने उमन्गों
की धूप चढ़ी है,

उन नज़्मों को लिखने का
वक्त खास ही होगा,
उन ख्वाहिशों को उकेरने
का एहसास भी होगा,

अपनी हसरतों को लिखने
का खुमार मुझमे अभी है,
उस आने वाले वक्त
का इंतज़ार मुझे भी है ।।