tag:blogger.com,1999:blog-20962383655288096822024-03-13T19:00:58.711+05:30ज़िंदगी की किताबों के कुछ पन्ने....Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-82076661029253694042018-12-09T22:12:00.001+05:302018-12-09T22:12:23.587+05:30मय<p dir="ltr">मुझे मय की क्या ज़रूरत,<br>
इक जाम तुम्हारी आँखों का ही काफ़ी है ।।</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-52121787463615918962018-12-09T21:11:00.001+05:302018-12-09T21:11:27.918+05:30चाँद<p dir="ltr">मैंने अमावस में चाँद देखा था, <br>
तुमने चेहरे से नक़ाब जो हटाया था ।।</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-22466724679263130462015-05-29T15:44:00.001+05:302015-05-29T15:44:42.999+05:30दहशत...<p dir="ltr">सुबह निकला हूं, शाम घर <br>
आ पाऊं, दुआ करना,</p>
<p dir="ltr">हर कदम हादसों से भरा <br>
क्या खुशियां, क्या उमंगें<br>
मुझे क्या पता है?<br>
किन रास्तों पर बिछी सुरंग-ए-बारूद<br>
भाग्य या भगवान पर है,<br>
हां मियां, मुझे क्या पता है?</p>
<p dir="ltr">सुबह निकला हूं, शाम घर <br>
आ पाऊं, दुआ करना,</p>
<p dir="ltr">हर गांव, हर बस्ती,<br>
हर शहर, हर कस्बा,<br>
जिधर देखो उधर कत्लगाहें<br>
हर शहर, हर चौराहे <br>
पर तलाशी लेती <br>
वो कातिल निगाहें,</p>
<p dir="ltr">दहशत के साये में <br>
जीने की आदत सी<br>
हो गयी है अपनी,<br>
दर-बदर ढूंढता हूं<br>
शायद ज़िंदगी खो<br>
सी गयी है अपनी,</p>
<p dir="ltr">सुबह निकला हूं, शाम घर <br>
आ पाऊं, बस तुम दुआ करना ।।</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-19432254118764598292015-05-02T09:59:00.001+05:302015-05-02T09:59:55.072+05:30क्यों ठहर गया था.....<p dir="ltr">क्यों ठहर गया था <br>
इस जीवन-पथ यात्रा में ,<br>
वह असफलता थी मेरी <br>
पराजय तो न थी , <br>
क्यों शिथिल, नीरव होकर <br>
ठहर गया था , <br>
वह असफलता इतनी <br>
भयावह भी तो न थी !</p>
<p dir="ltr">क्यों ठहर गया था <br>
इस जीवन-पथ यात्रा मे,</p>
<p dir="ltr">क्यों वह मानसिक वेदना<br>
कचोट रही थी , <br>
क्यों साहस विश्रिङ्खल था<br>
छिन्न -पत्रों सदृश ,<br>
क्यों वह तीक्ष्ण मार्मिक<br>
प्रतिध्वनि साल रही थी !</p>
<p dir="ltr">क्यों ठहर गया था <br>
इस जीवन-पथ यात्रा में,</p>
<p dir="ltr">क्यों उत्साह बटोही<br>
बिसर गया था , <br>
जीवन-पथ की कठिन<br>
कंटक राहों में , <br>
क्यों ठहर गया था <br>
इस जीवन-पथ यात्रा में , <br>
वह असफलता थी <br>
मेरी पराजय तो न थी!</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-45732837989434676522015-04-09T12:06:00.001+05:302015-04-09T12:06:59.066+05:30......तुम अभी भी मेरे पास हो !<p dir="ltr">ये पानी भी क्यों इतना <br>
खामोश सा बहता है,<br>
तुम्हारी यादों में बसा ये <br>
समा भी कुछ कहता है,</p>
<p dir="ltr">इन हवाओं में अभी भी <br>
तुम्हारी खुश्बू क्यों आती है,<br>
नाम सुन कर लबों पर <br>
मुस्कुराहट क्यों छाती है,</p>
<p dir="ltr">मेरी बातों में बहुत खास हो,<br>
इन हसीं ख्वाबों का एहसास हो,<br>
किसने कहा तुम दूर हो मुझसे,<br>
तुम अभी भी मेरे पास हो !!<br></p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-51715924345879473852015-04-02T08:08:00.001+05:302015-04-02T08:08:35.798+05:30.......अपना अक्स खोजता हूं।<p dir="ltr">उन तन्हां पलों में कभी <br>
ज़िंदगी को सोचता हूं,<br>
तेरी उन प्यारी बातों में <br>
अपना अक्स खोजता हूं,</p>
<p dir="ltr">लम्हा थम सा गया था<br>
तेरे आने के बाद,<br>
सब कुछ हासिल हो गया<br>
तुझे पाने के बाद,</p>
<p dir="ltr">तेरे संग भीड़ में भी<br>
खामोशी सी लगती थी,<br>
वो रातें भी हसीं थीं<br>
साथ मेरे जगती थीं,</p>
<p dir="ltr">मेरी चाहतें भी थीं ,<br>
तेरा सुकूं भी था,<br>
तेरी मुस्कुराहटें भी थीं,<br>
मेरा जुनूं भी था,</p>
<p dir="ltr">तुम्हें याद तो होगी ना<br>
वो पीपल की छांव,<br>
वो खूबसूरत बारिशें,<br>
हमारे सपनों का गांव,</p>
<p dir="ltr">तेरी यादों की किताबों संग <br>
तेरी बाट जोहता हूं,<br>
तेरी उन प्यारी बातों में <br>
फ़िर अपना अक्स खोजता हूं !!</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-43281317130407893112015-03-28T20:42:00.001+05:302015-03-28T20:42:05.381+05:30इश्क<p dir="ltr">चल उन शामों को याद करें,<br>
जो हमने साथ बिताईं...</p>
<p dir="ltr">उन पलों को फ़िर जियें<br>
जिनमें पूरी कायनात पाई,</p>
<p dir="ltr">बस वो जुस्तज़ूं पूरी हो,<br>
उसका इंतज़ार करता हूं,</p>
<p dir="ltr">मुझे याद है इश्क हमारा,<br>
मैं बाहें पसारे बैठा हूं...<br>
मैं राह तुम्हारी तकता हूं !!</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-65943995696849136422015-03-18T18:28:00.001+05:302015-03-18T18:28:21.396+05:30Memories..<p dir="ltr">The fragrance of your talks,<br>
In the garden of my memories,<br>
The evenings near the coastal rocks,<br>
Still say your untold stories.</p>
<p dir="ltr">The wavy sea,that lovely sight,<br>
That embrace,that lingering kiss<br>
That blanket,the white night,<br>
That memorable moment of bliss.</p>
<p dir="ltr">The insistence,the passion<br>
The wish,the intoxication<br>
Miss your ludicrous talks, <br>
with you that garden walks,<br>
your flirtatious looks,<br>
Read your letters,<br>
Kept in old books.</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-91109124035077486682015-03-04T16:25:00.001+05:302015-03-04T16:25:11.401+05:30ज़िद के पर्दे...<p dir="ltr">अपने ज़िद के पर्दों को<br>
मेरी ख्वाहिशों की खिड़कियों से हटाओ,</p>
<p dir="ltr">मंज़िल की उम्मीद नहीं करता तुमसे, पर कुछ वक्त यूं ही राहों में तो साथ आओ !!</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-31456297989944713442015-03-02T05:51:00.001+05:302015-03-02T09:08:37.412+05:30बेशर्मी<p dir="ltr">सियासी गुरूर तुम पर कुछ <br>
यूं सिर चढ़ बोलता है,<br>
कि ज़िक्र से भी हमारे <br>
लहू तुम्हारा खौलता है,</p>
<p dir="ltr">इन्सानियत के कत्ल-ए-आम<br>
को माना तुम ना बचा पाए,<br>
हैरानियत तो इस पर है कि<br>
तुम मरहम भी न लगा पाए,</p>
<p dir="ltr">अपने बेशर्मी के कम्बलों<br>
को सीने से हटाते,<br>
कुछ वक्त के लिये ही सही<br>
हमारे तम्बुओं में तो आते,</p>
<p dir="ltr">वो रन्गीं शामें तो तुम्हें <br>
खूब भायी होंगी,<br>
पर क्या खबर कि तुम्हें <br>
हमारी याद भी आयी होगी,</p>
<p dir="ltr">वहां तुम्हारे जश्न-ए-रात <br>
की सुबह न होती होगी,<br>
यहां हमारी काली रातों <br>
की सुबह न होती है,</p>
<p dir="ltr">वो सफ़ेद चादर कोहरे की <br>
रातों में जो छाती है,<br>
कफ़न बन के हमारे आंखों<br>
के 'नूर' को ओढ़ाती है,</p>
<p dir="ltr">सांसे सहमी न होती हमारी<br>
एक बार तुमने पुकारा तो होता,<br>
उजड़ा आशियां तो दो पल में<br>
बनता गर एक हाथ तुम्हारा भी होता,</p>
<p dir="ltr">पर शायद पानी तुम्हारी <br>
आंखों का सूख गया है,<br>
तुम पर यकीन भी हमारा <br>
टूट सा गया है !!</p>
<p dir="ltr">( अगस्त-सितम्बर 2013 में उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर दन्गों में सैकड़ों जानें गयीं, कई सैकड़ों लोग घायल हुए और हज़ारों की संख्या में लोग बेघर हुए, इससे भी बुरे हालात तब हुए जब दन्गों के बाद राहत कैम्पों की बदहाल हालत की ओर प्रशासन की उदासीनता बनी रही, नतीजन दिसम्बर 2013 और जनवरी 2014 में 33 से ज्यादा (एक रिपोर्ट के मुताबिक) बच्चों की मृत्यु  हुई।</p>
<p dir="ltr">'बेशर्मी' मैने जनवरी 2014 में लिखी जिसे आज आपके समक्ष रख रहा हूं ।</p>
<p dir="ltr">'बेशर्मी' एक प्रयास है उन राहत कैम्पों की हालत दर्शाने का और श्रद्धांजली है उन बच्चों को जिनकी मृत्यु राहत कैम्पों में सर्दी के कारण हुई। )</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-54185905920281876382015-02-27T23:16:00.001+05:302015-02-27T23:16:59.702+05:30कभी.……<p dir="ltr">कभी किनारों से खौफ़ था मुझे,<br>
पर आज तेरे ख्यालों के साहिलों<br>
से नाता है मेरा,</p>
<p dir="ltr">कभी जुबां पर लाने <br>
से कतराता था,<br>
पर आज हर सांस <br>
पर नाम है तेरा,</p>
<p dir="ltr">कभी मुझे तेरे लिये दो लफ़्ज़ <br>
भी ज़्यादा लगते थे,<br>
पर आज तुझपर <br>
किताब भी कम लगती है,</p>
<p dir="ltr">शायद ये तेरी सोहबत <br>
का सुरूर है,<br>
पर ग़म-ए-इश्क ये भी कि<br>
तू मुझसे दूर है !!</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-14015217600836704142015-02-26T21:32:00.001+05:302015-02-26T21:32:19.093+05:30परछाई...<p dir="ltr">तेरी बातों की खुश्बू फ़िर<br>
मन की हवाओं में आयी है,<br>
वक्त की धूप में अब<br>
शायद तेरी यादें ही <br>
मेरी ज़िंदगी की परछाई है !<br>
</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-13909810392867555362015-02-25T19:15:00.001+05:302015-02-25T20:13:20.108+05:30ज़िक्र जो तेरा जब होता है.…<p dir="ltr">ज़िक्र जो तेरा जब होता है, <br>
मुस्कुराहटों का सावन <br>
लबों से बरसता है,</p>
<p dir="ltr">तेरे संग ज़िंदगी में <br>
इक मदहोशी सी<br>
लगती है,<br>
बिना तेरे खामोशी सी<br>
रहती है,<br>
हर जुस्तज़ू बिन तेरे <br>
अधूरी  है,<br>
यादों में संग है <br>
पर अभी भी दूरी है,</p>
<p dir="ltr">लम्हा वहीं थम जाता है..<br>
मन तेरे ही खयालों में होता है, <br>
ज़िक्र जो तेरा जब होता है !!</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-44210681223459879622015-02-24T14:35:00.001+05:302015-02-24T23:57:44.090+05:30 कुछ यूं कहूं………<p dir="ltr">कुछ यूं कहूं, सामने तुम्हारे <br>
मेरे लफ़्ज नहीं निकलते,<br>
ज़िंदगी की शाम यूं ही बीतती है, <br>
तेरी यादों के लम्हों में ढलते,<br>
आरजू तो बहुत कुछ कहने की है,<br>
पर उन रस्तों पर कभी <br>
तुम नही मिलती, <br>
कभी हम नही मिलते !</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-8370235452926237672015-02-24T04:20:00.001+05:302015-02-24T04:20:00.882+05:30....बात बेमानी सी लगती है !<p dir="ltr">उन लम्हों से गुज़री<br>
हर याद, <br>
अब अंजानी सी <br>
लगती है ! <br>
सोचता हूँ लिखूँ <br>
नज़्म तुझपे, <br>
पर 'नज़्म' पर नज़्म लिखना,<br>
बात बेमानी सी लगती है!</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="http://lh3.ggpht.com/-dmuALKch3Rc/VOuulTfqohI/AAAAAAAABRg/-8zXXIxkbps/s1600/images%2525284%252529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="http://lh3.ggpht.com/-dmuALKch3Rc/VOuulTfqohI/AAAAAAAABRg/-8zXXIxkbps/s640/images%2525284%252529.jpg"> </a> </div>Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-41529824202186135162014-11-17T14:22:00.001+05:302014-11-17T14:22:12.267+05:30वो शहर...<p dir="ltr">कुछ ने कहा कि वो हिंदू था,<br>
कुछ ने कहा वो मुसलमान था,<br>
पर किसी ने ये न कहा<br>
कि वो भी इंसान था,</p>
<p dir="ltr">ज़मीर सियासतदारों का <br>
उस वक्त सो रहा था,<br>
और इन्सानियत कोने में <br>
बैठा रो  रहा था,</p>
<p dir="ltr">कभी जिन्होंने मनाई थी<br>
एकसाथ ईद और दिवाली,<br>
उन्होंने ही भर दी थी<br>
एक दूसरे के लहू से नाली,</p>
<p dir="ltr">एक पल भी न सोचा था<br>
कि होगा अंजाम इस तरह,<br>
कल तक जो कहते थे भाई <br>
करेंगे कत्ले-आम इस तरह,</p>
<p dir="ltr">अमन की आंखों के वो<br>
सपने टूट चुके थे,<br>
इज्जत वो उस शहर कि<br>
वो लूट चुके थे,</p>
<p dir="ltr">अब बाकी न कोई निशां था,</p>
<p dir="ltr">कई ज़िन्दगियां तबाह हुई थी<br>
उस शाम-ओ -सहर में ,<br>
क्या मिला था तुझे <br>
ओ राम ,ऐ रहीम आपस में<br>
मचाये इस कहर में,</p>
<p dir="ltr">क्या मिला तुझे, जिनकी <br>
बातों में तू आया था,<br>
तुझे इन्सानियत के खिलाफ़ <br>
भड़काया था,</p>
<p dir="ltr">क्या यही तेरी कौम ने<br>
तुझको सिखाया था ?</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="http://lh4.ggpht.com/-i6rSDehu99Q/VGm3OR7JVbI/AAAAAAAAAow/JnJnWfwewNE/s1600/13924_S_riots-m.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="http://lh4.ggpht.com/-i6rSDehu99Q/VGm3OR7JVbI/AAAAAAAAAow/JnJnWfwewNE/s640/13924_S_riots-m.jpg"> </a> </div>Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-25203043360607193172014-11-08T15:11:00.001+05:302014-11-08T20:30:52.237+05:30लिखुंगा तेरे बारे में ऐ ज़िंदगी……<p dir="ltr">सोचता हूँ लिखुंगा तेरे <br>
बारे  में भी ऐ ज़िंदगी ,</p>
<p dir="ltr">संघर्षों की धूप में ,<br>
सफलताओं की छांव में ,<br>
असफल पीड़ा के रुप में ,<br>
प्रयत्निक छाले भरे पांव में ,</p>
<p dir="ltr">सत्य स्वप्नों की अभिलाषा में ,<br>
मानसिक शांति की पिपासा में ,</p>
<p dir="ltr">रम सा गया हूँ,<br>
पर लिखुंगा तेरे बारे में भी.………</p>
<p dir="ltr">आशा के उजालों में ,<br>
निराशा के अंधकार में ,<br>
मंज़िलों के लंबे रस्तों  में ,<br>
उम्मीदों से लदे बस्तों में ,</p>
<p dir="ltr">कर्तव्यों की तल्लीनता में ,<br>
काल की विहीनता में,</p>
<p dir="ltr">थम सा गया हूँ ,<br>
पर सोचता हूँ, एक दिन <br>
लिखुंगा तेरे <br>
बारे  में भी ऐ ज़िंदगी !!</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-42018406882308125662014-11-05T00:20:00.001+05:302014-11-05T00:20:38.747+05:30ज़िंदगी का दरिया......<p dir="ltr">      ज़िंदगी का दरिया  ये जो<br>
           बहता है,<br>
       अक्सर ही मुझसे कुछ<br>
           कहता है,</p>
<p dir="ltr">      इसके लफज़ों में  कुछ<br>
           खास है,<br>
      अपनेपन का वो हसीं<br>
           एहसास है,<br>
       <br>
      तन्हाइयों की लहरें जब <br>
          इन पर आती हैं,<br>
      जज़्बातों को अपने संग<br>
          बहा ले जाती हैं,</p>
<p dir="ltr">     उम्मीदों की आवाज़ें जब<br>
        साहिलों तक जाती है,<br>
      उन बातों , एह्सासों को<br>
       गहराई तक पहुंचाती है,</p>
<p dir="ltr">    सपनों की रौशनी दरिये <br>
      पर जो पड़ती है ,<br>
    झिल्मिलाहट और चमक <br>
      उसकी और बढ़ती है,</p>
<p dir="ltr">   मेरे इरादों के पत्थर अब <br>
      टूट जाये<br>
  ये मुमकिन नहीं लगता,<br>
  दरिया ये चन्द नाकामियों<br>
     से सूख जाये<br>
  अब मुमकिन नहीं लगता ।।</p>
<p dir="ltr">        <br>
        </p>
<p dir="ltr">       </p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-70745678215137640132014-10-24T13:36:00.001+05:302014-10-24T13:36:41.691+05:30इंतज़ार....<p dir="ltr">मैं इंतज़ार करता हुं,<br>
तेरे लौट आने का ऐ ज़िंदगी,<br>
हर पल तेरी बाट जोहता हुं,<br>
शायद ग़म है तेरे खो जाने का,</p>
<p dir="ltr">वो ज़ुस्तज़ू, वो ख्वाहिशें<br>
अभी अधूरी हैं,<br>
मुझे यकीं है तेरे आने का,<br>
तू है तो वो पूरी हैं,</p>
<p dir="ltr">मैं इंतज़ार करता हुं,<br>
तेरे लौट आने का ऐ ज़िंदगी,<br>
तेरे लबों से फ़िर वो<br>
बातें सुनना चाहता हूं,<br>
उन हसीं ख्वाबों को<br>
फ़िर से बुनना चाहता हुं,</p>
<p dir="ltr">तू ही दर्द , तू ही सुकूं<br>
तू ही सुरूर, तू ही जुनूं<br>
मेरी रज़ा है तुझमे ही,<br>
हां तुझमे खो जाने की,<br>
मेरी ख्वाहिश है<br>
तुझको ही पाने की,</p>
<p dir="ltr">मैं इंतज़ार करता हुं,<br>
तेरे लौट आने का ऐ ज़िंदगी!!<br>
</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-7871004079635100672014-10-20T01:46:00.001+05:302014-10-20T01:46:37.635+05:30 नज़्म.....<p dir="ltr">एक नज़्म जो ख्वाहिशों की<br>
स्याहियों में दबी है,<br>
जिसे लिखने की चाहत<br>
अभी भी जगी है,</p>
<p dir="ltr">वो नज़्म कब मन <br>
के कागज़ों पर आयेगी,<br>
चन्द लफज़ों में ही सही<br>
सब कुछ कह जायेगी,</p>
<p dir="ltr">खुश्बू उन स्याहियों की<br>
हवाओं में छायी होगी,<br>
उन कागज़ों पर उतरी<br>
ज़िंदगी की परछाई होगी,</p>
<p dir="ltr">खमोशियों की बून्दें<br>
जो कागज़ों पर पड़ी हैं,<br>
उनको सुखाने उमन्गों<br>
की धूप चढ़ी है,</p>
<p dir="ltr">उन नज़्मों को लिखने का<br>
वक्त खास ही होगा,<br>
उन ख्वाहिशों को उकेरने<br>
का एहसास भी होगा,</p>
<p dir="ltr">अपनी हसरतों को लिखने<br>
का खुमार मुझमे अभी है,<br>
उस आने वाले वक्त <br>
का इंतज़ार मुझे भी है ।।<br>
</p>
Sandeep Jaiswalhttp://www.blogger.com/profile/06209549479814991167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2096238365528809682.post-77372012900824305102014-10-17T19:01:00.001+05:302014-10-17T19:03:05.690+05:30ख्वाहिशों की बारिशें<p dir="ltr">ख्वाहिशों की बारिशों में भीग जाने दो,<br>
मस्तियों के सैलाबों में डूब जाने दो,</p>
<p dir="ltr">मुस्कुराहटो की लहरों को<br>
ज़िंदगी के शहर में आ जाने दो,<br>
गमों का किनारा खुद ही टूट जायेगा<br>
उम्मीदों का आंचल जो थामोगे,<br>
नाकामियों का साथ खुद ही छूट जायेगा ,<br></p>
<p dir="ltr">हर लम्हे मे वो रोशनी खोजो,<br>
जो आशाओं की परछाई दे ,<br>
इरादों की आवाजें ऊंची हो इतनी, <br>
गूंज आस्मां तक सुनाई दे ,</p>
<p dir="ltr">तोड़ दो बन्दिशों की सलाखें<br>
जो सामने खड़ी हैं,<br>
आज़ादियों में सांस लेने की<br>
यही वो घड़ी है,</p>
<p dir="ltr">इंतज़ार है मुझे भी ख्वाहिशों की<br>
बारिशों में भीग जाने का,<br>
कुछ ख्वाबों , कुछ लम्हों,<br>
कुछ एह्सासों को <br>
फ़िर से जी जाने का!</p>
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