Friday, May 29, 2015

दहशत...

सुबह निकला हूं, शाम घर
आ पाऊं, दुआ करना,

हर कदम हादसों से भरा
क्या खुशियां, क्या उमंगें
मुझे क्या पता है?
किन रास्तों पर बिछी सुरंग-ए-बारूद
भाग्य या भगवान पर है,
हां मियां, मुझे क्या पता है?

सुबह निकला हूं, शाम घर
आ पाऊं, दुआ करना,

हर गांव, हर बस्ती,
हर शहर, हर कस्बा,
जिधर देखो उधर कत्लगाहें
हर शहर, हर चौराहे
पर तलाशी लेती
वो कातिल निगाहें,

दहशत के साये में
जीने की आदत सी
हो गयी है अपनी,
दर-बदर ढूंढता हूं
शायद ज़िंदगी खो
सी गयी है अपनी,

सुबह निकला हूं, शाम घर
आ पाऊं, बस तुम दुआ करना ।।

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