Sunday, December 9, 2018

मय

मुझे मय की क्या ज़रूरत,
इक जाम तुम्हारी आँखों का ही काफ़ी है ।।

चाँद

मैंने अमावस में चाँद देखा था,
तुमने चेहरे से नक़ाब जो हटाया था ।।

Friday, May 29, 2015

दहशत...

सुबह निकला हूं, शाम घर
आ पाऊं, दुआ करना,

हर कदम हादसों से भरा
क्या खुशियां, क्या उमंगें
मुझे क्या पता है?
किन रास्तों पर बिछी सुरंग-ए-बारूद
भाग्य या भगवान पर है,
हां मियां, मुझे क्या पता है?

सुबह निकला हूं, शाम घर
आ पाऊं, दुआ करना,

हर गांव, हर बस्ती,
हर शहर, हर कस्बा,
जिधर देखो उधर कत्लगाहें
हर शहर, हर चौराहे
पर तलाशी लेती
वो कातिल निगाहें,

दहशत के साये में
जीने की आदत सी
हो गयी है अपनी,
दर-बदर ढूंढता हूं
शायद ज़िंदगी खो
सी गयी है अपनी,

सुबह निकला हूं, शाम घर
आ पाऊं, बस तुम दुआ करना ।।

Saturday, May 2, 2015

क्यों ठहर गया था.....

क्यों ठहर गया था
इस जीवन-पथ यात्रा में ,
वह असफलता थी मेरी
पराजय तो न थी ,
क्यों शिथिल, नीरव होकर
ठहर गया था ,
वह असफलता इतनी
भयावह भी तो न थी !

क्यों ठहर गया था
इस जीवन-पथ यात्रा मे,

क्यों वह मानसिक वेदना
कचोट रही थी ,
क्यों साहस विश्रिङ्खल था
छिन्न -पत्रों सदृश ,
क्यों वह तीक्ष्ण मार्मिक
प्रतिध्वनि साल रही थी !

क्यों ठहर गया था
इस जीवन-पथ यात्रा में,

क्यों उत्साह बटोही
बिसर गया था ,
जीवन-पथ की कठिन
कंटक राहों में ,
क्यों ठहर गया था
इस जीवन-पथ यात्रा में ,
वह असफलता थी
मेरी पराजय तो न थी!

Thursday, April 9, 2015

......तुम अभी भी मेरे पास हो !

ये पानी भी क्यों इतना
खामोश सा बहता है,
तुम्हारी यादों में बसा ये
समा भी कुछ कहता है,

इन हवाओं में अभी भी
तुम्हारी खुश्बू क्यों आती है,
नाम सुन कर लबों पर
मुस्कुराहट क्यों छाती है,

मेरी बातों में बहुत खास हो,
इन हसीं ख्वाबों का एहसास हो,
किसने कहा तुम दूर हो मुझसे,
तुम अभी भी मेरे पास हो !!

Thursday, April 2, 2015

.......अपना अक्स खोजता हूं।

उन तन्हां पलों में कभी
ज़िंदगी को सोचता हूं,
तेरी उन प्यारी बातों में
अपना अक्स खोजता हूं,

लम्हा थम सा गया था
तेरे आने के बाद,
सब कुछ हासिल हो गया
तुझे पाने के बाद,

तेरे संग भीड़ में भी
खामोशी सी लगती थी,
वो रातें भी हसीं थीं
साथ मेरे जगती थीं,

मेरी चाहतें भी थीं ,
तेरा सुकूं भी था,
तेरी मुस्कुराहटें भी थीं,
मेरा जुनूं भी था,

तुम्हें याद तो होगी ना
वो पीपल की छांव,
वो खूबसूरत बारिशें,
हमारे सपनों का गांव,

तेरी यादों की किताबों संग
तेरी बाट जोहता हूं,
तेरी उन प्यारी बातों में
फ़िर अपना अक्स खोजता हूं !!

Saturday, March 28, 2015

इश्क

चल उन शामों को याद करें,
जो हमने साथ बिताईं...

उन पलों को फ़िर जियें
जिनमें पूरी कायनात पाई,

बस वो जुस्तज़ूं पूरी हो,
उसका इंतज़ार करता हूं,

मुझे याद है इश्क हमारा,
मैं बाहें पसारे बैठा हूं...
मैं राह तुम्हारी तकता हूं !!