Friday, February 27, 2015

कभी.……

कभी किनारों से खौफ़ था मुझे,
पर आज तेरे ख्यालों के साहिलों
से नाता है मेरा,

कभी जुबां पर लाने
से कतराता था,
पर आज हर सांस
पर नाम है तेरा,

कभी मुझे तेरे लिये दो लफ़्ज़
भी ज़्यादा लगते थे,
पर आज तुझपर
किताब भी कम लगती है,

शायद ये तेरी सोहबत
का सुरूर है,
पर ग़म-ए-इश्क ये भी कि
तू मुझसे दूर है !!

Thursday, February 26, 2015

परछाई...

तेरी बातों की खुश्बू फ़िर
मन की हवाओं में आयी है,
वक्त की धूप में अब
शायद तेरी यादें ही
मेरी ज़िंदगी की परछाई है !

Wednesday, February 25, 2015

ज़िक्र जो तेरा जब होता है.…

ज़िक्र जो तेरा जब होता है,
मुस्कुराहटों का सावन
लबों से बरसता है,

तेरे संग ज़िंदगी में
इक मदहोशी सी
लगती है,
बिना तेरे खामोशी सी
रहती है,
हर जुस्तज़ू बिन तेरे
अधूरी  है,
यादों में संग है
पर अभी भी दूरी है,

लम्हा वहीं थम जाता है..
मन तेरे ही खयालों में होता है,
ज़िक्र जो तेरा जब होता है !!

Tuesday, February 24, 2015

कुछ यूं कहूं………

कुछ यूं कहूं, सामने तुम्हारे
मेरे लफ़्ज नहीं निकलते,
ज़िंदगी की शाम यूं ही बीतती है,
तेरी यादों के लम्हों में ढलते,
आरजू तो बहुत कुछ कहने की है,
पर उन रस्तों पर कभी
तुम नही मिलती,
कभी हम नही मिलते !

....बात बेमानी सी लगती है !

उन लम्हों से गुज़री
हर याद,
अब अंजानी सी
लगती है !
सोचता हूँ लिखूँ
नज़्म तुझपे,
पर 'नज़्म' पर नज़्म लिखना,
बात बेमानी सी लगती है!