Tuesday, February 24, 2015

....बात बेमानी सी लगती है !

उन लम्हों से गुज़री
हर याद,
अब अंजानी सी
लगती है !
सोचता हूँ लिखूँ
नज़्म तुझपे,
पर 'नज़्म' पर नज़्म लिखना,
बात बेमानी सी लगती है!

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