Sunday, December 9, 2018

मय

मुझे मय की क्या ज़रूरत,
इक जाम तुम्हारी आँखों का ही काफ़ी है ।।

चाँद

मैंने अमावस में चाँद देखा था,
तुमने चेहरे से नक़ाब जो हटाया था ।।