Monday, November 17, 2014

वो शहर...

कुछ ने कहा कि वो हिंदू था,
कुछ ने कहा वो मुसलमान था,
पर किसी ने ये न कहा
कि वो भी इंसान था,

ज़मीर सियासतदारों का
उस वक्त सो रहा था,
और इन्सानियत कोने में
बैठा रो  रहा था,

कभी जिन्होंने मनाई थी
एकसाथ ईद और दिवाली,
उन्होंने ही भर दी थी
एक दूसरे के लहू से नाली,

एक पल भी न सोचा था
कि होगा अंजाम इस तरह,
कल तक जो कहते थे भाई
करेंगे कत्ले-आम इस तरह,

अमन की आंखों के वो
सपने टूट चुके थे,
इज्जत वो उस शहर कि
वो लूट चुके थे,

अब बाकी न कोई निशां था,

कई ज़िन्दगियां तबाह हुई थी
उस शाम-ओ -सहर में ,
क्या मिला था तुझे
ओ राम ,ऐ रहीम आपस में
मचाये इस कहर में,

क्या मिला तुझे, जिनकी
बातों में तू आया था,
तुझे इन्सानियत के खिलाफ़
भड़काया था,

क्या यही तेरी कौम ने
तुझको सिखाया था ?