Monday, November 17, 2014

वो शहर...

कुछ ने कहा कि वो हिंदू था,
कुछ ने कहा वो मुसलमान था,
पर किसी ने ये न कहा
कि वो भी इंसान था,

ज़मीर सियासतदारों का
उस वक्त सो रहा था,
और इन्सानियत कोने में
बैठा रो  रहा था,

कभी जिन्होंने मनाई थी
एकसाथ ईद और दिवाली,
उन्होंने ही भर दी थी
एक दूसरे के लहू से नाली,

एक पल भी न सोचा था
कि होगा अंजाम इस तरह,
कल तक जो कहते थे भाई
करेंगे कत्ले-आम इस तरह,

अमन की आंखों के वो
सपने टूट चुके थे,
इज्जत वो उस शहर कि
वो लूट चुके थे,

अब बाकी न कोई निशां था,

कई ज़िन्दगियां तबाह हुई थी
उस शाम-ओ -सहर में ,
क्या मिला था तुझे
ओ राम ,ऐ रहीम आपस में
मचाये इस कहर में,

क्या मिला तुझे, जिनकी
बातों में तू आया था,
तुझे इन्सानियत के खिलाफ़
भड़काया था,

क्या यही तेरी कौम ने
तुझको सिखाया था ?

Saturday, November 8, 2014

लिखुंगा तेरे बारे में ऐ ज़िंदगी……

सोचता हूँ लिखुंगा तेरे
बारे  में भी ऐ ज़िंदगी ,

संघर्षों की धूप में ,
सफलताओं की छांव में ,
असफल पीड़ा के रुप में ,
प्रयत्निक छाले भरे पांव में ,

सत्य स्वप्नों की अभिलाषा में ,
मानसिक शांति की पिपासा में ,

रम सा गया हूँ,
पर लिखुंगा तेरे बारे में भी.………

आशा के उजालों में ,
निराशा के अंधकार में ,
मंज़िलों के लंबे रस्तों  में ,
उम्मीदों से लदे बस्तों में ,

कर्तव्यों की तल्लीनता में ,
काल की विहीनता में,

थम सा गया हूँ ,
पर सोचता हूँ, एक दिन
लिखुंगा तेरे
बारे  में भी ऐ ज़िंदगी !!

Wednesday, November 5, 2014

ज़िंदगी का दरिया......

      ज़िंदगी का दरिया  ये जो
           बहता है,
       अक्सर ही मुझसे कुछ
           कहता है,

      इसके लफज़ों में  कुछ
           खास है,
      अपनेपन का वो हसीं
           एहसास है,
      
      तन्हाइयों की लहरें जब
          इन पर आती हैं,
      जज़्बातों को अपने संग
          बहा ले जाती हैं,

     उम्मीदों की आवाज़ें जब
        साहिलों तक जाती है,
      उन बातों , एह्सासों को
       गहराई तक पहुंचाती है,

    सपनों की रौशनी दरिये
      पर जो पड़ती है ,
    झिल्मिलाहट और चमक
      उसकी और बढ़ती है,

   मेरे इरादों के पत्थर अब
      टूट जाये
  ये मुमकिन नहीं लगता,
  दरिया ये चन्द नाकामियों
     से सूख जाये
  अब मुमकिन नहीं लगता ।।

       
       

       

Friday, October 24, 2014

इंतज़ार....

मैं इंतज़ार करता हुं,
तेरे लौट आने का ऐ ज़िंदगी,
हर पल तेरी बाट जोहता हुं,
शायद ग़म है तेरे खो जाने का,

वो ज़ुस्तज़ू, वो ख्वाहिशें
अभी अधूरी हैं,
मुझे यकीं है तेरे आने का,
तू है तो वो पूरी हैं,

मैं इंतज़ार करता हुं,
तेरे लौट आने का ऐ ज़िंदगी,
तेरे लबों से फ़िर वो
बातें सुनना चाहता हूं,
उन हसीं ख्वाबों को
फ़िर से बुनना चाहता हुं,

तू ही दर्द , तू ही सुकूं
तू ही सुरूर, तू ही जुनूं
मेरी रज़ा है तुझमे ही,
हां तुझमे खो जाने की,
मेरी ख्वाहिश है
तुझको ही पाने की,

मैं इंतज़ार करता हुं,
तेरे लौट आने का ऐ ज़िंदगी!!

Monday, October 20, 2014

नज़्म.....

एक नज़्म जो ख्वाहिशों की
स्याहियों में दबी है,
जिसे लिखने की चाहत
अभी भी जगी है,

वो नज़्म कब मन
के कागज़ों पर आयेगी,
चन्द लफज़ों में ही सही
सब कुछ कह जायेगी,

खुश्बू उन स्याहियों की
हवाओं में छायी होगी,
उन कागज़ों पर उतरी
ज़िंदगी की परछाई होगी,

खमोशियों की बून्दें
जो कागज़ों पर पड़ी हैं,
उनको सुखाने उमन्गों
की धूप चढ़ी है,

उन नज़्मों को लिखने का
वक्त खास ही होगा,
उन ख्वाहिशों को उकेरने
का एहसास भी होगा,

अपनी हसरतों को लिखने
का खुमार मुझमे अभी है,
उस आने वाले वक्त
का इंतज़ार मुझे भी है ।।

Friday, October 17, 2014

ख्वाहिशों की बारिशें

ख्वाहिशों की बारिशों में भीग जाने  दो,
मस्तियों के सैलाबों में डूब जाने दो,

मुस्कुराहटो की लहरों को
ज़िंदगी  के शहर में आ जाने दो,
गमों का किनारा खुद ही टूट जायेगा
उम्मीदों का आंचल जो थामोगे,
नाकामियों का साथ खुद ही छूट जायेगा ,

हर लम्हे मे वो रोशनी खोजो,
जो आशाओं की परछाई दे ,
इरादों की आवाजें ऊंची हो इतनी,
गूंज आस्मां तक सुनाई दे ,

तोड़ दो बन्दिशों की सलाखें
जो सामने खड़ी हैं,
आज़ादियों में  सांस लेने की
यही वो घड़ी है,

इंतज़ार है मुझे भी ख्वाहिशों की
बारिशों में भीग जाने का,
कुछ ख्वाबों , कुछ लम्हों,
कुछ एह्सासों को
फ़िर से जी जाने का!