एक नज़्म जो ख्वाहिशों की
स्याहियों में दबी है,
जिसे लिखने की चाहत
अभी भी जगी है,
वो नज़्म कब मन
के कागज़ों पर आयेगी,
चन्द लफज़ों में ही सही
सब कुछ कह जायेगी,
खुश्बू उन स्याहियों की
हवाओं में छायी होगी,
उन कागज़ों पर उतरी
ज़िंदगी की परछाई होगी,
खमोशियों की बून्दें
जो कागज़ों पर पड़ी हैं,
उनको सुखाने उमन्गों
की धूप चढ़ी है,
उन नज़्मों को लिखने का
वक्त खास ही होगा,
उन ख्वाहिशों को उकेरने
का एहसास भी होगा,
अपनी हसरतों को लिखने
का खुमार मुझमे अभी है,
उस आने वाले वक्त
का इंतज़ार मुझे भी है ।।
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